आपनामां लगाडतां छतां पण बाह्य पदार्थोमां दोडी-दोडी
जाय छे, ए ज मोटो खेद छे.
परिग्रहोनो त्याग कर्यो, तपोवन (तपथी पवित्र थयेली भूमि)मां
वास कर्यो, सर्व प्रकारना संशय पण छोड्या अने अत्यंत कठिन
व्रत पण धारण कर्या, हजी सुधी तेवां दुष्कर व्रतो धारण कर्या
छतां पण सिद्धि (मोक्ष)नी प्राप्ति न थई, केम के प्रबळ पवनथी
कंपायेला पांदडानी माफक अमारुं मन रात्रि-दिवस बाह्य
पदार्थोमां भ्रमण करतुं रहे छे.
जे ज्ञानस्वरूपी आत्माने विना प्रयोजने सदा अत्यंत व्याकुल
कर्या करे छे, जे इन्द्रियरूप गामने वसावे छे (अर्थात् आ
मननी कृपाथी ज इन्द्रियोनी विषयोमां स्थिति थाय छे) अने
जे संसार उत्पादक कर्मोनो परम मित्र छे, (अर्थात् मन