जीवित रहे छे त्यां सुधी मुनिओने क्यांथी कल्याणनी प्राप्ति
होई शके ! अर्थात् कल्याणनी प्राप्ति होई शके नहि.
छे. ते कर्म आत्मामां मन द्वारा आवे छे; केम के मनना
आश्रयथी इन्द्रियो, रूप आदि देखवामां प्रवृत्त थाय छे अने
रूप आदिने देखी जीव राग-द्वेष आदि उत्पन्न करे छे, त्यारे
तेने ज्ञानावरण आदि द्रव्यकर्मोनी उत्पत्ति थाय छे; तेथी ते
कर्मोना संबंधथी आत्मा सदा व्याकुळ ज रहे छे अने ज्यारे
आत्मा ज व्याकुळ रहे त्यारे मुनिओने कल्याणनी प्राप्ति पण
क्यांथी होई शके ? माटे मन ज कल्याणने रोकनारुं छे.
छे एवा विकल्प वडे, आपथी अन्य बाह्य समस्त पदार्थो
तरफ निरंतर घूम्या करे छे. हे स्वामिन् ! तो शुं करवुं ? केम
के आ जगतमां, मोहवशात् कोने मृत्युनो भय नथी ? सर्वने
छे, माटे सविनय प्रार्थना छे के समस्त प्रकारना अनर्थो
करनार तथा अहित करनार मारा मोहने नष्ट करो.