मारुं मन समस्त संसारने उत्पन्न करनार व्यापार (प्रवृत्ति)थी
रहित थई, हे जिनेंद्र ! आपना निर्विकार परमानंदमय
परब्रह्मस्वरूपमां स्थित थवाने इच्छा करे छे.
प्रकारना दुःखोने अनुभवे छे, जे समये शुभ उपयोग वर्ते छे
ते समये पुण्यनी उत्पत्ति थाय छे; अने ते पुण्यथी जीवने
छे. अर्थात् ए बंनेथी सदा संसार ज उत्पन्न थाय छे, किंतु
शुद्धोपयोगथी अविनाशी अने आनंदस्वरूप पदनी प्राप्ति थाय
छे. हे अर्हंत प्रभो ! आप तो ते पदमां निवास करी रह्या
छो, पण हुं ए शुद्धोपयोगरूप पदमां निवास करवाने इच्छुं छुं.
बे उपयोगथी तो संसारमां ज भटकवुं पडे छे; केम के जे समये
जीवनो उपयोग अशुभ हशे ते समये तेने पापनो बंध थशे
अने पापनो बंध थवाथी तेने नाना प्रकारनी माठी गतिओमां