ते शुभ योगनी कृपाथी तेने राजा, महाराजा आदि पदोनी
प्राप्ति थशे; तेथी ते पण संसारने वधारनार छे. किंतु, जे समये
तेने शुद्धोपयोगनी प्राप्ति थशे ते समये संसारनी प्राप्ति ज थशे
नहि, पण निर्वाणनी प्राप्ति ज थशे; माटे हे भगवान! हुं
शुद्धोपयोगमां ज स्थित रहेवाने इच्छुं छुं.
स्थित विदिशामां; तेम ज नथी स्थूल के नथी सूक्ष्म; ते
आत्मज्योति नथी तो पुल्लिंग, नथी स्त्रीलिंग के नथी नपुंसक-लिंग
पण; वळी ते नथी भारे के नथी हलको; ते ज्योति कर्म, स्पर्श,
शरीर, गंध, संख्या, वचन, वर्णथी रहित छे, निर्मळ छे अने
सम्यग्ज्ञानदर्शनस्वरूप मूर्ति छे; ते उत्कृष्ट ज्योतिस्वरूप हुं छुं,
किंतु ते उत्कृष्ट आत्मस्वरूप-ज्योतिथी हुं भिन्न नथी.
मारामां भेद पाड्यो छे, परंतु कर्मशून्य अवस्थामां जेवो
आपनो आत्मा छे तेवो ज मारो आत्मा छे. आ समये ते कर्म