तथा तेना स्वरूपनुं परिवर्तन पण करी शकतां नथी, तेम
आत्मा ज्ञान-दर्शनमय अमूर्त पदार्थ छे, तेथी तेना पर
आधि, व्याधि, जरा, मरण आदि पोतानां कांईपण प्रभाव
पाडी शकता नथी (तथा तेना स्वरूपनुं परिवर्तन पण करी
शकतां नथी), केमके ते मूर्त शरीरनो धर्म छे, ज्यारे आत्मा
शरीरथी सर्वथा भिन्न छे.
छाया विना), नाना प्रकारना दुःखोथी भरपूर संसारमां सदा
बळी झळी रहुं छुं. जेम ते माछली ज्यारे जळमां रहे छे
त्यारे सुखी रहे छे तेम ज्यां सुधी मारुं मन आपना
करुणारसपूर्ण अत्यंत शीतल चरणोमां प्रविष्ट (प्रवेशेलुं) रहे
छे त्यां सुधी हुं पण सुखी रहुं छुं, तेथी हे नाथ ! मारुं
मन आपना चरण कमळो छोडी अन्य स्थळे के ज्यां हुं
दुःखी थाउं त्यां प्रवेश न करे ए प्रार्थना छे.
प्रकारना कर्मो आवी मारा आत्मा साथे बंधाय छे; परंतु
वास्तविकपणे हुं ते कर्मोथी सदाकाल सर्व क्षेत्रे जुदो ज छुं