चैतन्यथी आ कर्मोने भिन्न पाडवामां आप ज कारण छो;
तेथी हे शुद्धात्मन् ! हे जिनेंद्र ! मारी स्थिति निश्चयपूर्वक
आपमां ज छे.
आपनो आत्मा कर्मबंध रहित छे तेम मारा आत्मा साथे पण
कोई प्रकारना कर्मोनुं बंधन रहेतुं नथी; तेथी हे भगवान!
मारी स्थिति निश्चयपूर्वक आपना स्वरूपमां ज छे.
(लक्ष्मीथी) प्रयोजन, नथी तो शरीरथी प्रयोजन, तारे वचन
तथा इन्द्रियोथी पण कांई काम नथी, तेम ज
काम नथी, केम के ते सर्व पुद्गल द्रव्यना ज पर्यायो छे. वळी
ताराथी भिन्न छे तोपण, बहु खेदनी वात ए छे के तुं तेमने
पोताना मानी तेमनो आश्रय करे छे, तेथी शुं तुं द्रढ बंधनथी
बंधाईश नहि? अवश्य बंधाईश.