Alochana-Gujarati (Devanagari transliteration).

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चैतन्यस्वरूपी छो, समस्त लोक तथा शरीर, इन्द्रिय द्रव्य,
वचन आदि सर्व पदार्थो पुद्गल द्रव्यना पर्याय छे अने
ताराथी भिन्न छे, एम होवा छतां पण, जो तुं तेमने
पोताना समजी तेमनो आश्रय करीश तो तुं अवश्यमेव
बंधाईश; तेथी ते सर्व परपदार्थो परनी ममता छोडी
शुद्धानंद चैतन्यस्वरूप आत्मानुं ध्यान कर के जेथी तुं कर्मोथी
न बंधाय.
भेदविज्ञान द्वारा आत्मामांथी विकारनो नाश :
२५. अर्थ :धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य, काल-
द्रव्यए चारे द्रव्यो कोई पण प्रकारे मारुं अहित करतां
नथी; किंतु ए चारे द्रव्यो, गति, स्थिति आदि कार्योमां मने
सहकारी छे, तेथी मारा सहायक थईने ज रहे छे; परंतु
नोकर्म (त्रण शरीर, छ पर्याप्ति) अने कर्म जेनुं स्वरूप छे,
एवुं तथा समीपे रहेनार अने बंधने करनार एक पुद्गल
द्रव्य ज मारुं वैरी छे, तेथी आ समये में तेना
भेदविज्ञानरूप तलवारथी खंडखंड ऊडावी दीधा छे. (खरो
वैरी तो पोतानो अशुद्धभाव छे.)
भावार्थ :धर्म, अधर्म, आकाश, काल अने पुद्गल
पांच द्रव्य माराथी भिन्न छे, तेमांथी धर्म, अधर्म, आकाश अने
काल
ए चार द्रव्य तो मारुं कोई प्रकारे अहित करतां नथी,
परंतु मने सहाय करे छे. अर्थात् धर्मद्रव्य तो मारा गमनमां
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