प्रखर मध्याह्न
मासनी बपोरनी अत्यंत गरमी पण कांई करी शके नहि तेम
हुं निश्चयपूर्वक आपनी सेवामां द्रढपणे स्थित छुं, तो मने
बळवान संसाररूप वैरी पण जराय त्रास आपी शके नहि.
जे कोई बुद्धिमान मनुष्य त्रणे लोकना समस्त पदार्थोनो,
अबाधित गंभीर द्रष्टिथी विचार करे छे, तो ते पुरुषनी द्रष्टिमां
हे भगवान ! आप ज एक सारभूत पदार्थ छो अने आपथी
भिन्न समस्त पदार्थो असारभूत ज छे. अतः आपना
आश्रयथी ज मने परम संतोष थयो छे.
साथे देखनारुं आपनुं दर्शन छे, आपने अनंत सुख अने
अनंत बळ छे तथा आपनी प्रभुता पण निर्मलतर छे, वळी