आपनुं शरीर १देदीप्यमान छे; तेथी जो योगीश्वरोए सम्यक्
योगरूप २नेत्र द्वारा आपने प्राप्त करी लीधा तो तेओए शुं
न जाणी लीधुं ? शुं न देखी लीधुं ? तथा तेओए शुं न
प्राप्त करी लीधुं ? अर्थात् सर्व करी लीधुं.
भावार्थ : — जो योगीश्वरोए पोतानी उत्कृष्ट योग-
द्रष्टिथी अनंत गुणसंपन्न आपने जोई लीधा तो तेओए
सर्व देखी लीधुं, सर्व जाणी लीधुं अने सर्व प्राप्त करी लीधुं.
पूर्णनी प्राप्तिनुं प्रयोजन : —
६. अर्थ : — हे जिनेंद्र ! आपने ज हुं त्रण लोकना
स्वामी मानुं छुं, आपने ज जिन अर्थात् अष्ट कर्मोना
विजेता तथा मारा स्वामी मानुं छुं, मात्र आपने ज
भक्तिपूर्वक नमस्कार करुं छुं. सदा आपनुं ज ध्यान करुं छुं,
आपनी ज सेवा अने स्तुति करुं छुं अने केवळ आपने ज
मारुं शरण मानुं छुं. अधिक शुं कहेवुं ? जो कंई संसारमां
प्राप्त थाओ तो ए थाओ के आपना सिवाय अन्य कोई पण
साथे मारे प्रयोजन न रहे.
भावार्थ : — हे भगवान ! आप साथे ज मारे
प्रयोजन रहे अने आपथी भिन्न अन्यथी मारे कोई प्रकारनुं
प्रयोजन न रहे, एटली विनयपूर्वक प्रार्थना छे.
१. श्री तीर्थंकर प्रभुनुं शरीर परम औदारिक अने स्फटिक रत्न
जेवुं निर्मळ होईने देदीप्यमान होय छे. २. श्रद्धा – ज्ञान.
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