९६] [अष्टपाहुड
आगे कहते हैं कि जो इसप्रकार ज्ञानसे ऐसे जानता है वह सम्यग्ज्ञानी हैंः––
जीवाजीवविभत्ती जो जाणइ सो हवेइ सण्णाणी।
रायादिदोसरहिओ जिणसासणे १मोक्खमग्गोत्ति।। ३९।।
जीवाजीवविभक्तिं यः जानाति स भवेत् सज्ज्ञानः।
रागादिदोषरहितः जिनशासने मोक्षमार्ग इति।। ३९।।
अर्थः––जो पुरुष जीव और अजीवका भेद जानता है वह सम्यग्ज्ञानी होता है और
रागादि दोषोंसे रहित होता है, इसप्रकार जिनशासनमें मोक्षमार्ग है।
भावार्थः––जो जीव – अजीव पदार्थका स्वरूप भेदरूप जानकर स्व–परका भेद जानता
है वह सम्यग्ज्ञानी होता हैे और परद्रव्यों से रागद्वेष छोड़नेसे ज्ञानमें स्थिरता होनेपर निश्चय
सम्यक्चारित्र होता है, वही जिनमत में मोक्षमार्गका स्वरूप कहा है। अन्य मतवालोंने अनेक
प्रकारसे कल्पना करके कहा है वह मोक्षमार्ग नहीं है।। ३९।।
आगे इसप्रकार मोक्षमार्ग को जानकर श्रद्धा सहित इसमें प्रवृत्ति करता है वह शीघ्र ही
मोक्षको प्राप्त करता है इसप्रकार कहते हैंः––
दंसणणाणचरित्तं तिण्णि वि जाणेह परमसद्धाए।
जं जाणिऊण जोई अइरेण लहंति णिव्वाणं।। ४०।।
दर्शनज्ञानचरित्रं त्रीण्यपि जानीहि परमश्रद्धया।
यत् ज्ञात्वा योगिनः अचिरेण लभंते निर्वाणम्।। ४०।।
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१ पाठान्तरः– मोक्खमग्गुत्ति।
जे जाणतो जीव–अजीवना सुविभागने, सद्ज्ञानी ते
रागादिविरहित थाय छे–जिनशासने शिवमार्ग जे। ३९।
दृग, ज्ञान ने चारित्र–त्रण जाणो परम श्रद्धा वडे,
जे जाणीने योगीजनो निर्वाणने अचिरे वरे। ४०।