जं देइ दिक्खसिक्खा कम्मक्खयकारणे सुद्धा।। १६।।
यत् ददाति दीक्षाशिक्षे कर्मक्षयकारणे शुद्धे।। १६।।
अर्थः––जिनबिंब कैसा है? ज्ञानमयी है, संयमसे शुद्ध है, अतिशयकर वीतराग है,
कर्मके क्षयका कारण और शुद्ध है––इसप्रकार की दीक्षा और शिक्षा देता है।
अर्थात् विधान बताना, ये दोनों भव्य जीवोंको देते हैं। इसलिये १––प्रथम तो वह आचार्य
ज्ञानमयी हो, जिनसूत्रका उनको ज्ञान हो, ज्ञान बिना यथार्थ दीक्षा–शिक्षा कैसे हो? और २–
–आप संयम से शुद्ध हो, यदि इसप्रकार न हो तो अन्य को भी संयमसे शुद्ध नहीं करा
सकते। ३––अतिशय–विशेषतया वीतराग न हो तो कषायसहित हो, तब दीक्षा, शिक्षा यथार्थ
नहीं दे सकते हैं; अतः इसप्रकार आचार्य को जिनका प्रतिबिम्ब जानना।। १६।।
जस्स य दंसण णाणं अत्थि धुवं चेयणाभावो।। १७।।
यस्य च दर्शनंज्ञानं अस्ति ध्रुवं चेतनाभावः।। १७।।
दीक्षा तथा शिक्षा करमक्षयहेतु आपे शुद्ध जे। १६।
तेनी करो पूजा विनय–वात्सल्य–प्रणमन तेहने,