बोधपाहुड][१२३
केवलज्ञान उत्पन्न होने पर दस होते हैंः––– १–उपसर्ग का अभाव, २–अदयाका
अभाव, ३–शरीर की छाया न पड़ना, ४–चतुर्मख दिखना, ५–सब विद्याओं का स्वामित्व, ६–
नेत्रोंके पलक न गिरना, ७–शतयोजन सुभिक्षता, ८–आकाशगमन, ९–कवलाहार नहीं होना,
१०–नख–केशोंका नहीं बढ़ना, ऐसे दस होते हैं।
चौदह देवकृत होते हैंः–––– १–सकलार्द्धमागधी भाषा, २–सब जीवोंमें मैत्री भाव, ३–
सब ऋतुके फल फूल फलना, ४–दर्पण समान भूमि, ५–कंटक रहित भूमि, ६–मंद सुगंध
पवन, ७–सबके आनंद होना, ८–गंधोदक वृष्टि, ९–पैरोंके नीचे कमल रचना, १०–सर्वधान्य
निष्पत्ति, ११–दसों दिशाओं का निर्मल होना, १२–देवों के द्वारा आह्वानन, १३–धर्मचक्रका आगे
चलना, १४–अष्टमंगलद्रव्योंका आगे चलना।
अष्ट मंगल द्रव्योंके नाम १–छत्र, २–ध्वजा, ३–दर्पण, ४–कलश, ५–चामर,
६–भृङ्गार (झारी), ७–ताल (ठवणा), और ८–स्वास्तिक (साँथिया) अर्थात् सुप्रतचिक ऐसे
आठ होते हैं। चौंतीस अतिशय के नाम कहे।
आठ प्रातिहार्य होते हैं उनके नाम ये हैं – १–अशोक वृक्ष, २–पुष्पवृष्टि,
३–दिव्यध्वनि, ४–चामर, ५–सिंहासन, ६–भामण्डल, ७–दुन्दुभि वादित्र और ८–छत्र ऐसे आठ
होते हैं। इसप्रकार गुणस्थान द्वारा अरहंत का स्थापन कहा।। ३२।।
अब आगे मार्गणा द्वारा कहते हैंः–––
गइ इंदियं च काए जोए वेए कसाय णाणे य।
संजम दंसण लेसा भविया सम्मत्त सण्णि आहारे।। ३३।।
गतौ इन्द्रिये च काये योगे वेदे कषाये ज्ञाने च।
संयमे दर्शने लेश्यायां भव्यत्वे सम्यक्त्वे संज्ञिनि आहारे।। ३३।।
अर्थः––गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व,
सम्यक्त्व, संज्ञी और आहार इसप्रकार चौदह मार्गणा होती है।
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गति–इन्द्रि–काये, योग–वेद–कषाय–संयम–ज्ञानमां,
दग–भव्य–लेश्या–संज्ञी–समकित–आ’ रमां ए स्थापवा। ३३।