Ashtprabhrut (Hindi). Gatha: 34 (Bodh Pahud).

< Previous Page   Next Page >


Page 124 of 394
PDF/HTML Page 148 of 418

 

background image
१२४] [अष्टपाहुड
अरहंत सयोगकेवली को तेरहवाँ गुणस्थान है, इसमें ‘मार्गणा’ लगाते हैं। गति– चार में
मनुष्यगति है, इन्द्रियजाति– पाँच में पँचेन्द्रिय जाति है, काय– छहमें त्रसकाय है, योग
पंद्रह में योग–मनोयोग तो सत्य और अनुभय इसप्रकार दो और ये ही वचन योग दो तथा
काययोग औदारिक इसप्रकार पाँच योग हैं, जब समुद्घात करे तब औदारिकमिश्र और कार्माण
ये दो मिलकर सात योग हैं; वेद– तीनों का ही अभाव है; कषाय– पच्चीस सबही का अभाव
है; ज्ञान– आठ में केवलज्ञान है; संयम– सात में एक यथाख्यात है; दर्शन– चारमें एक
केवलदर्शन है; लेश्या– छह में एक शुक्ल जो योग निमित्त है; भव्य– दो में एक भव्य है;
सम्यक्त्व– छह में एक क्षायिक सम्यक्त्व है; संज्ञी– दो में संज्ञी है, वह द्रव्य से है और भाव
से क्षयोपशनरूप भाव मन का अभाव है; आहारक अनाहारक– दो में ‘आहारक’ हैं वह भी
नोकर्मवर्गणा अपेक्षा है किन्तु कवलाहार नहीं है और समुद्घात करे तो ‘अनाहारक’ भी है,
इसप्रकार दोनों हैं। इसप्रकार मार्गणा अपेक्षा अरहंत का स्थापन जानना ।।३३।।

आगे पर्याप्ति द्वारा कहते हैंः–––
आहारो य सरीरो इंदियमण आणपाणभासा य।
पज्जत्तिगुणसमिद्धो उत्तमदेवो हवइ अरहो।। ३४।।
आहारः च शरीरं इन्द्रियमनआनप्राणभाषाः च।
पर्याप्ति गुणसमृद्धः उत्तमदेवः भवति अर्हन्।। ३४।।

अर्थः––आहार, शरीर, इन्द्रिय, मन, आनप्राण अर्थात् श्वासोच्छ्वास और भाषा––
इसप्रकार छह पर्याप्ति हैं, इस पर्याप्ति गुण द्वारा समृद्ध अर्थात् युक्त उत्तम देव अरहंत हैं।
भावार्थः––पर्याप्ति का स्वरूप इप्रकार है–––––जो जीव एक अन्य पर्याय को छोड़कर
अन्य पर्याय में जावे तब विग्रह गति में तीन समय उत्कृष्ट बीच में रहे, पीछे सैनी पंचेन्द्रिय में
उत्पन्न हो। वहाँ तीन जाति की वर्गणा का ग्रहण करे – आहारवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा,
इसप्रकार ग्रहण करके ‘आहार’ जाति की वर्गणा से तो आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास
इसप्रकार चार पर्याप्ति अंतर्मुहूर्त कालमें पूर्ण
––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––
आहार, काया, इन्द्रि, श्वासोच्छ्वास, भाषा, मन तणी,
अर्हंत उत्तम देव छे समृद्ध षट् पर्याप्तिथी। ३४।