करे, इसप्रकार छहों पर्याप्ति अंतर्मुहूर्त में पूर्ण करता है, तत्पश्चात् आयुपर्यन्त पर्याप्त ही
कहलाता है और नोकर्मवर्गणा का ग्रहण करता ही रहता है। यहाँ आहार नाम कवलाहार नहीं
जानना। इसप्रकार तेरहवें गुणस्थान में भी अरहंतके पर्याप्त पूर्ण ही है, इसप्रकार पर्याप्ति द्वारा
अरहंत की स्थापना है।। ३४।।
आणप्पाणप्पाणा आउगपाणेण होंति दह पाणा।। ३५।।
आनप्राणप्राणाः आयुष्कप्राणेन भवंति दशप्राणाः।। ३५।।
अर्थः––पाँच इन्द्रियप्राण, मन–वचन–काय तीन बलप्राण, एक श्वासोच्छ्वास प्राण और
एक आयुप्राण ये दस प्राण हैं।
चार प्राण हैं और द्रव्य अपेक्षा दसों ही हैं। इसप्रकार प्राण द्वारा अरहंत का स्थापन है।। ३५।।
एदे गुणगणजुत्तो गुणमारुढो हवइ अरहो।। ३६।।
बे आयु–श्वासोच्छ्वास प्राणो, –प्राण ए दस होय त्यां। ३५।
मानवभवे पंचेन्द्रि तेथी चौदमे क्ववस्थान छे;