अत्तावणेण जादो बाहुबली कित्तियं
आतापनेन जातः बाहुबली कियन्तं कालम्।। ४४।।
अर्थः––देखो, बाहुबली श्री ऋषभदेवका पुत्र देहादिक परिग्रहको छोड़कर निर्ग्रंथ मुनि
बन गया, तो भी मानकषाय से कलुष कुछ समय तक आतापन योग धारणकर स्थित हो गया,
फिर भी सिद्धि नहीं पाई।
कलुषता रही कि भरत की भूमि पर मैं केसे रहूँ? तब कायोत्सर्ग योगसे एक वर्ष तक खड़े रहे
परन्तु केवलज्ञान नहीं पाया। पीछे कलुषता मिटी तब केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। इसलिये कहते
हैं कि ऐसे महान पुरुष बड़ी शक्ति के धारकके भी भाव शुद्धि के बिना सिद्धि नहीं पाई तब
अन्य की क्या बात? इसलिये भावोंको शुद्ध करना चाहिये, यह उपदेश है।। ४४।।
सवणत्तणं ण पत्तो णियाणमित्तेण भवियणुय।। ४५।।
आतापना करता रह्या बाहुबल मुनि क्यां लगी? ४४।
तन–भोजनादि प्रवृत्तिना तजनार मुनि मधुपिंगले,