णिग्गंथे पव्वयणे सद्दहणं होइ सम्मत्तं।। ९०।।
निर्ग्रंथे प्रवचने श्रद्धानं भवति सम्यक्त्वम्।। ९०।।
अर्थः––हिंसा रहित धर्म, अठारह दोष रहित देव, निर्ग्रंथ प्रवचन अर्थात् मोक्षका मार्ग
तथा गुरु इनमें श्रद्धान होने पर सम्यक्त्व होता है।
अन्यमत वाले मानते हैं वे सब देव क्षुधादि तथा रागद्वेषादि दोषोंसे संयुक्त हैं, इसलिये वीतराग
सर्वज्ञ अरहंत देव सब दोषोंसे रहित हैं उनको देव माने, श्रद्धान करे वही सम्यग्दृष्टि है।
अन्यमत वाले श्वेताम्बरादिक जैसाभास मोक्ष मानते हैं वह मोक्षमार्ग नहीं है। ऐसा श्रद्धान करे
वह सम्यग्दृष्टि है, ऐसा जानना।। ९०।।
लिंगं ण परावेक्खं जो मण्णइ वस्स सम्मत्तं।। ९१।।
निर्ग्रंथ प्रवचन केरूं जे श्रद्धान ते समकित कह्युं। ९०।
सम्यक्त्व तेने, जेह माने लिंग परनिरपेक्षने,