त्यागने योग्य जाने, त्यागना चाहे ऐसी प्रकृति हो तब सम्यग्दर्शनरूप भाव कहते हैं, इस
सम्यग्दर्शन भाव से ज्ञान भी सम्यक् नाम पाता है और पद के अनुसार चारित्र की प्रवृत्ति को
सुशील कहते हैं, इसप्रकार कुशील सुशील शब्दका सामान्य अर्थ है।
मोक्षसन्मुख प्रकृति हो तब सुशील कहते हैं, इसलिये ज्ञानमें और शील में विशेष नहीं कहा है,
यदि ज्ञान में सुशील न आवे तो ज्ञानको इन्द्रियों के विषय नष्ट करते हैं, ज्ञान को अज्ञान
करते हैं तब कुशील नाम पाता है।
है कि मैं शील के गुणों को कहूँगा अतः इस प्रकार जाना जाता है कि आचार्य के आशय में
सुशील ही के कहने का प्रयोजन है, सुशील ही को शीलनाम से कहते हैं, शील बिना कुशील
कहते हैं।
इन्द्रियों के विषयों से आसक्ति होती है तब वह ज्ञान नाम नहीं प्राप्त करता, इस प्रकार
जानना चाहिये। व्यवहारमें शीलका अर्थ स्त्री–संसर्ग वर्जन करने का भी है, अतः विषय सेवन
का ही निषेध है। पर द्रव्य मात्र का संसर्ग छोड़ना, आत्मामें लीन होना वह परमब्रह्मचर्य है।
इसप्रकार ये शील ही के नामान्तर जानना।। २।।