Ashtprabhrut (Hindi). Gatha: 16 (Sheel Pahud).

< Previous Page   Next Page >


Page 374 of 394
PDF/HTML Page 398 of 418

 

background image
३७४] [अष्टपाहुड
भावार्थः–– मनुष्य जन्म प्राप्त करके शीलरहित हैं, विषयों में आसक्त रहते हैं,
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रसे रहित हैं और यौवन अवस्था में शरीर की लावण्यता कांतिरूप
सुन्दर, धन, संपदा प्राप्त करके इनके गर्व से मदोन्मत्त रहेत हैं तो उन्होंने मनुष्य जन्म
निष्फल खोया, मनुष्यजन्म में सम्यग्दर्शनादिक का अंगीकार करना और शील संयम पालना
योगय था, वह तो अंगीकार किया नहीं तब निष्फल ही गया।
ऐसा भी बताया है कि पहिली गाथा में कुमत कुशास्त्र की प्रशंसा करनेवाले का ज्ञान
निरर्थक कहा था वैसे ही यहाँ रूपादिक का मद करो तो यह भी मिथ्यात्व का चिन्ह है, जो
मद करे उसे मिथ्यादृष्टि ही जानना तथा लक्ष्मीरूप यौवन कांति से मंडित हो और शीलरहित
व्यभिचारी हो तो उसकी लोक में निंदा ही होती है।। १५।।

आगे कहते हैं कि बहुत शास्त्रोंका ज्ञान होते हुए भी शील ही उत्तम हैः–––
वायरण छंद वइसेसियववहारणायसत्थेसु।
वेदेऊण सुदेसु य तेसु सुयं उत्तम शीलं।। १६।।
व्याकरणछन्दो वैशेषिकव्यवहारन्यायशास्त्रेषु।
विदित्वा श्रुतेषु च तेषु श्रुतं उत्तमं शीलम्।। १६।।
अर्थः––व्याकरण, छहद, वैशेषिक, व्यवहार, न्यायशास्त्र–––ये शास्त्र और श्रुत अर्थात्
जिनागम इनमें उन व्याकरणादिक को और श्रुत अर्थात् जिनागम को जानकर भी, इनमें शील
हो वही उत्तम है।

भावार्थः––व्याकरणादि शास्त्र जाने और जिनागम को भी जाने तो भी उनमें शील ही
उत्तम है। शास्त्रों को जानकर भी विषयों में ही आसक्त है तो उन शास्त्रों का जानना वृथा है,
उत्तम नहीं है।। १६।।

आगे कहते हैं कि जो शीलगुण से मंडित है वे देवों के भी वल्लभ हैंः–––
––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––––
१ पाठान्तरः – मदं ।
व्याकरण, छंदो, न्याय, वैशेषिक व्यवहारादिनां,
शास्त्रो तणुं हो ज्ञान तोपण शील उत्तम सर्वमां। १६।