ये शोधयंति चतुर्थं द्रश्यतां जनैः सर्वैंः।। २९।।
अर्थः––आचार्य कहते हैं कि––यह सब लोग देखो––श्वान, गर्दभ इनमें और गौ आदि
पशु तथा स्त्री इनमें किसी का मोक्ष होना दिखता है? वह तो दिखता नहीं है। मोक्ष तो चौथा
पुरुषार्थ है, इसलिये जो चतुर्थ परुषार्थ को शोधते हैं उन्ही के मोक्ष का होना देखा जाता है।
शोधते हैं और पुरुष ही उसको हेरते हैं–––उसकी सिद्ध करते है,ं अन्य अन्य श्वान गर्दभ
बैल पशु स्त्री इनके मोक्ष का शोधना प्रसिद्ध नहीं है, जो हो तो मोक्ष का पुरुषार्थ ऐसा नाम
क्यों हो? यहाँ आशय ऐसा है कि मोक्ष शील से होता है, और श्वान गर्दभ आदिक हैं वे तो
अज्ञानी हैं कुशील हैं, उनका स्वभाव प्रकृति ही ऐसी है कि पलट कर मोक्ष होने योग्य तथा
उसके शोधने योग्य नहीं हैं, इसलिये पुरुष को मोक्ष का साधन शील को जानकर अंगीकार
करना, सम्यग्दर्शनादिक है वह तो शील ही के परिवार पहिले कहे ही हैं इसप्रकार जानना
चाहिये।। २९।।
तो सो सच्चइपुत्तो दसपुव्वीओविकिं गदो णरयं।। ३०।।
वर्हि सः सात्यकिपुत्रः दशपूर्विकः किं गतः नरकं।। ३०।।
अर्थः––जो विषयों में लोल अर्थात् लोलुपी – आसक्त और ज्ञानसहित ऐसे ज्ञानियों ने
मोक्ष साधा हो तो दश पूर्वको जाननेवाला रुद्र नरक को क्यों गया?
करनेवाला हुआ, मुनिपद से भ्रष्ट होकर कुशील सेवन किया इसलिये नरक में गया, यस कथा
पुराणों में प्रसिद्ध है।। ३०।।