पाप –यह नव तत्त्व अर्थात् नव पदार्थ हैं; छह द्रव्य काल बिना पंचास्तिकाय हैं। पुण्य–पाप
बिना नव पदार्थ सप्त तत्त्व हैं। इनका संक्षेप स्वरूप इस प्रकार है– जीव तो चेतनस्वरूप है
और चेतना दर्शन–ज्ञानमयी है; पुद्गल स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, गुणसहित मूर्तिक है, उसके
परमाणु और स्कंध ऐसे दो भेद हैं; स्कंध के भेद शब्द, बन्ध, सूक्ष्म, स्थूल, संस्थान भेद, तम,
छाया, आतप, उद्योत, इत्यादि अनेक प्रकार हैं; धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य ये एक एक
हैं–अमूर्तिक हैं, निष्क्रिय हैं, कालाणु असंख्यात द्रव्य है। काल को छोड़ कर पाँच द्रव्य
बहुप्रदेशी हैं इसलिये अस्तिकाय पाँच हैं। कालद्रव्य बहुप्रदेशी नहीं है इसलिये वह अस्तिकाय
नहीं है; इत्यादि उनका स्वरूप तत्त्वार्थसूत्र की टीका से जानना। जीव पदार्थ एक है और
अजीव पदार्थ पाँच हैं, जीव के कर्म बंध योग्य पुद्गलोंका आना आस्रव है, कर्मोंका बंधना बंध
है, आस्रव का रुकना संवर है, कर्मबंधका झड़ना निर्जरा है, सम्पूर्ण कर्मोंका नाश होना मोक्ष
है, जीवोंको सुख का निमित्त पुण्य है और दुःख का निमित्त पाप है;ऐसे सप्त तत्त्व और नव
पदार्थ हैं। इनका अगमके अनुसार स्वरूप जानकर श्रद्धान करनेवाले सम्यग्दृष्टि हैं ।।१९।।
ववहारा णिच्छयदो अप्पाणं हवइ सम्मत्तं।। २०।।
व्यवहारात् निश्चयतः आत्मैव भवति सम्यक्त्वम्।। २०।।
भिन्न वस्तु नहीं है आत्माही का परिणाम है सो आत्मा ही है। ऐसे सम्यक्त्व और आत्मा एक ही
वस्तु है यह निश्चयका आशय जानना ।।२०।।