सूत्रपाहुड][६३
भावार्थः––एक तो मुनि यथाजातरूप कहा और दूसरा यह उत्कृष्ट श्रावकका कहा, वह
ग्यारहवीं प्रतिमाका धारक उत्कृष्ट श्रावक है, वह एक वस्त्र तथा कोपीन मात्र धारण करता है
और भिक्षा भोजन करता है, पात्र में भी भोजन करता है और करपात्र में भी करता है,
समितिरूप वचन भी कहता है अथवा मौन भी रहता है, इसप्रकार यह दूसरा भेष है ।।२१।।
आगे तीसरा लिंग स्त्रीका कहते हैंः––
लिंगं इत्थीण हवदि भुंजइ पिंडं सुएयकालम्मि।
अज्जिय वि एक्कवत्था वत्थावरणेण भुंजेदि।। २२।।
लिंगं स्त्रीणां भवति भुंक्ते पिंडं स्वेक काले।
आर्या अपि एकवस्त्रा वस्त्रावरणेन भुंक्ते।। २२।।
अर्थः––स्त्रियोंका लिंग इसप्रकार है–एक काल में भोजन करे, बार–बार भोजन नहीं
करे, आर्यिका भी हो तो एक वस्त्र धारण करे और भोजन करते समय भी वस्त्रके आवरण
सहित करे, नग्न नहीं हो।
भावार्थः––स्त्री आर्यिका भी हो और क्षुल्लिका भी हो; वे दोनों ही भोजन तो दिन में
एक बार ही करें, आर्यिका हो वह एक वस्त्र धारण किये हुए ही भोजन करे नग्न न हो।
इसप्रकार तीसरा स्त्रीका लिंग है।।२२।।
आगे कहते हैं कि–वस्त्र धारक के मोक्ष नहीं, मोक्षमार्ग नग्नपणा ही हैः––
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छे लिंग एक स्त्रीओ तणुं, एकाशनी ते होय छे;
आचार्य एक घरे वसन, वस्त्रावृता भोजन करे। २२।