Ashtprabhrut (Hindi). Gatha: 23-24 Sutra: Pahud.

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६४] [अष्टपाहुड
ण वि सिज्झदि वत्थधरो जिणसासणे जइ विहोइ तित्थयरो।
णग्गो विमोक्खमग्गो सेसा उम्मग्गया सव्वे।। २३।।
नापि सिध्यति वस्त्रधरः जिनशासने यद्यपि भवति तीर्थंकरः।
नग्नः विमोक्षमार्गः शेषा उन्मार्गकाः सर्वे।। २३।।

अर्थः––जिनशास्त्र में इसप्रकार कहा है कि–वस्त्र को धारण करने वाला सीझता नहीं
है, मोक्ष नहीं पाता है, यदि तीर्थंकर भी हो जबतक गृहस्थ रहे तब तक मोक्ष नहीं पाता है,
दीक्षा लेकर दीगम्बररूप धारण करे तब मोक्ष पावे, क्योंकि नग्नपना ही मोक्षमार्ग है, शेष सब
लिंग उन्मार्ग हैं।

भावार्थः––श्वेताम्बर आदि वस्त्रधारकके भी मोक्ष होना कहते हैं वह मिथ्या है, यह
जिनमत नहीं है।।२३।।

आगे, स्त्रियोंकी दीक्षा नहीं है इसका कारण कहते हैंः––
लिंगम्मि य इत्थीणं थणंतरे णाहिकक्खदेसेसु।
भणिओ सुहुमो काओ तासिं कह होइ पवज्जा।। २४।।
लिंगे च स्त्रीणां स्तनांतरे नाभिकक्षदेशेषु।
भणितः सूक्ष्मः कायः तासां कथं भवति प्रव्रज्या।। २४।।

अर्थः––स्त्रियोंके लिंग अर्थात् योनिमें, स्तनांतर अर्थात् दोनों कूचोंके मथ्यप्रदेश में तथा
कक्ष अर्थात् दोनों कांखों में, नाभिमें सूक्ष्मकाय अर्थात् दृष्टिसे अगोचर जीव कहें हैं, अतः
इसप्रकार स्त्रियोंके
प्रवज्या अर्थात् दीक्षा कैसे हो?
भावार्थः––स्त्रियोंके योनी, स्तन, कांख, नाभिमें पंचेन्द्रिय जीवोंकी उत्पत्ति निरंतर कहीं
है, इनके महाव्रतरूप दीक्षा कैसे हो? महाव्रत कहे हैं वह उपचारसे कहे हैं, परमार्थसे नहीं है,
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१ पाठान्तर – प्रवज्या।

नहि वस्त्रधर सिद्धि लहे, ते होय तीर्थंकर भले;
बस नग्न मुक्तिमार्ग छे, बाकी बधा उन्मार्ग छे। २३।

स्त्रीने स्तनोनी पास, कक्षे, योनिमां नाभि विषे,
बाहु सूक्ष्म जीव कहेल छे; कयम होय दीक्षा तेमने? २४।