णग्गो विमोक्खमग्गो सेसा उम्मग्गया सव्वे।। २३।।
नग्नः विमोक्षमार्गः शेषा उन्मार्गकाः सर्वे।। २३।।
अर्थः––जिनशास्त्र में इसप्रकार कहा है कि–वस्त्र को धारण करने वाला सीझता नहीं
है, मोक्ष नहीं पाता है, यदि तीर्थंकर भी हो जबतक गृहस्थ रहे तब तक मोक्ष नहीं पाता है,
दीक्षा लेकर दीगम्बररूप धारण करे तब मोक्ष पावे, क्योंकि नग्नपना ही मोक्षमार्ग है, शेष सब
लिंग उन्मार्ग हैं।
भणिओ सुहुमो काओ तासिं कह होइ पवज्जा।। २४।।
भणितः सूक्ष्मः कायः तासां कथं भवति प्रव्रज्या।। २४।।
अर्थः––स्त्रियोंके लिंग अर्थात् योनिमें, स्तनांतर अर्थात् दोनों कूचोंके मथ्यप्रदेश में तथा
कक्ष अर्थात् दोनों कांखों में, नाभिमें सूक्ष्मकाय अर्थात् दृष्टिसे अगोचर जीव कहें हैं, अतः
इसप्रकार स्त्रियोंके
नहि वस्त्रधर सिद्धि लहे, ते होय तीर्थंकर भले;
बस नग्न मुक्तिमार्ग छे, बाकी बधा उन्मार्ग छे। २३।
स्त्रीने स्तनोनी पास, कक्षे, योनिमां नाभि विषे,