चारित धर्म बखानिये सांचो मोक्ष उपाय ।।१।।
प्राकृत गाथा बंधकी करूं वचनिका पंथ ।।२।।
इष्टदेव को नमस्कार करके चारित्रपाहुड़को कहने की प्रतिज्ञा करते हैंः––
वंदित्तु तिजगवंदा अरहंता भव्वजीवेहिं ।। १।।
णाणं दंसण सम्मं चारित्तं सोहिकारणं तेसिं।
मोक्खाराहणहेउं चारित्तं पाहुडं वोच्छे ।। २।। युग्मम्।
वंदित्वा त्रिजगद्वंदितान् अर्हतः भव्यजीवैः ।। १।।
ज्ञानं दर्शनं सम्यक् चारित्रं शुद्धिकारणं तेषाम्।
मोक्षाराधनहेतुं चारित्रं प्राभृतं वक्ष्ये ।। २।। युग्मम्।
अर्थः––आचार्य कहते हैं कि मैं अरहंत परमेष्ठीको नमस्कार करके चारित्रपाहुड़ को
कहूँगा। अरहंत परमेष्ठी कैसे हैं? अरहंत ऐसे प्राकृत अक्षर की अपेक्षा तो ऐसा अर्थ है–अकार
आदि अक्षरसे तो ‘अरि’ अर्थात् मोहकर्म, रकार अक्षरकी अपेक्षा रज अर्थात् ज्ञानावरण
दर्शनावरण कर्म, उस ही रकार से रहस्य अर्थात् अंतराय कर्म–इसप्रकार से चार घातिया
कर्मोंको हनना–घताना जिनके हुआ वे अरहन्त हैं। संस्कृतकी अपेक्षा ‘अर्ह’ ऐसा पूजा अर्थ में
धातु है उससे ‘अर्हन्’ उससे ऐसा निष्पन्न हो तब पूजा योग्य हो उसको अर्हत् कहते हैं वह
भव्य जीवोंसे पूज्य है। परमेष्ठी कहने से परम इष्ट अर्थात्