Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 217.

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बहिनश्रीके वचनामृत

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नहीं’ । उसेद्रव्यद्रष्टिवान जीवकोखबर है कि अनंत कालमें अनंत जीवोंने इस प्रकार द्रव्य पर द्रष्टि जमाकर अनंत विभूति प्रगट की है । द्रव्यद्रष्टि होने पर द्रव्यमें जो-जो हो वह प्रगट होता ही है; तथापि ‘मुझे सम्यग्दर्शन हुआ, मुझे अनुभूति हुई’ इस प्रकार द्रष्टि पर्यायमें चिपकती नहीं है । वह तो प्रारंभसे पूर्णता तक, सबको निकालकर, द्रव्य पर ही जमी रहती है । किसी भी प्रकारकी आशा बिना बिलकुल निस्पृहभावसे ही द्रष्टि प्रगट होती है ।।२१६।।

द्रव्यमें उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य सब होने पर भी कहीं द्रव्य और पर्याय दोनों समान कोटिके नहीं हैं; द्रव्यकी कोटि उच्च ही है, पर्यायकी कोटि निम्न ही है । द्रव्यद्रष्टिवानको अंतरमें इतना अधिक रस- कसयुक्त तत्त्व दिखायी देता है कि उसकी द्रष्टि पर्यायमें नहीं चिपकती । भले ही अनुभूति हो, परन्तु द्रष्टि अनुभूतिमेंपर्यायमेंचिपक नहीं जाती । ‘अहा ! ऐसा आश्चर्यकारी द्रव्यस्वभाव प्रगट