Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 225-227.

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बहिनश्रीके वचनामृत

और आत्माऐसा करते-करते, अंतरात्मभावरूप परिणमते-परिणमते, परमात्मा हो जाता है ।।२२४।।

अहा ! अमोघरामबाण समानगुरुवचन ! यदि जीव तैयार हो तो विभाव टूट जाता है, स्वभाव प्रगट हो जाता है । अवसर चूकने जैसा नहीं है ।।२२५।।

अपना अगाध गंभीर ज्ञायकस्वभाव पूर्ण रीतिसे देखने पर समस्त लोकालोक भूत-भविष्यकी पर्यायों सहित समयमात्रमें ज्ञात हो जाता है । अधिक जाननेकी आकांक्षासे बस होओ, स्वरूपनिश्चल ही रहना योग्य है ।।२२६।।

शुद्धनयके विषयभूत आत्माकी स्वानुभूति सुखरूप है । आत्मा स्वयमेव मंगलरूप है, आनन्दरूप है; इसलिये आत्माकी अनुभूति भी मंगलरूप एवं आनन्दरूप है ।।२२७।।