Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 248-251 Bol-No- 251-300.

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बहिनश्रीके वचनामृत

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जाकर मिलती हैं ।।२४७।।

विश्वका अद्भुत तत्त्व तू ही है । उसके अंदर जाने पर तेरे अनंत गुणोंका बगीचा खिल उठेगा । वहीं ज्ञान मिलेगा, वहीं आनन्द मिलेगा; वहीं विहार कर । अनंत कालका विश्राम वहीं है ।।२४८।।

तू अंतरमें गहरे-गहरे उतर जा, तुझे निज परमात्माके दर्शन होंगे । वहाँसे बाहर आना तुझे सुहायगा ही नहीं ।।२४९।।

मुनियोंको अंतरमें पग-पग परपुरुषार्थकी पर्याय-पर्यायमेंपवित्रता झरती है ।।२५०।।

द्रव्य उसे कहते हैं जिसके कार्यके लिये दूसरे साधनोंकी राह न देखना पड़े ।।२५१।।