भेदज्ञानके लक्षसे विकल्पात्मक भूमिकामें
आगमका चिंतवन मुख्य रखना । विशेष शास्त्रज्ञान
मार्गकी चतुर्दिशा सूझनेका कारण बनता है; वह
सत्-मार्गको सुगम बनाता है ।।२५२।।
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आत्माको तीन कालकी प्रतीति करनेके लिये
ऐसे विकल्प नहीं करना पड़ते कि ‘मैं भूतकालमें
शुद्ध था, वर्तमानमें शुद्ध हूँ, भविष्यमें शुद्ध रहूँगा’;
परन्तु वर्तमान एक समयकी प्रतीतिमें तीनों कालकी
प्रतीति समा जाती है — आ जाती है ।।२५३।।
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जिस प्रकार जीवको अपनेमें होनेवाले सुख-
दुःखका वेदन होता है वह किसीसे पूछने नहीं जाना
पड़ता, उसी प्रकार अपनेको स्वानुभूति होती है वह
किसीसे पूछना नहीं पड़ता ।।२५४।।
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अंतरका अपरिचित मार्ग; अंतरमें क्या घटमाल
चलती है उसका आगम एवं गुरुकी वाणीसे ही निर्णय
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बहिनश्रीके वचनामृत