किया जा सकता है । भगवानकी स्याद्वाद-वाणी ही
तत्त्वका प्रकाशन कर सकती है । जिनेन्द्रवाणी और
गुरुवाणीका अवलम्बन साथ रखना; तभी तू साधनाके
डग भर सकेगा ।।२५५।।
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साधकदशाकी साधना ऐसी कर कि जिससे तेरा
साध्य पूरा हो । साधकदशा भी अपना मूल स्वभाव
तो है नहीं । वह भी प्रयत्नरूप अपूर्ण दशा है,
इसलिये वह अपूर्ण दशा भी रखने योग्य तो है ही
नहीं ।।२५६।।
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शुद्ध द्रव्यस्वभावकी द्रष्टि करके तथा अशुद्धताको
ख्यालमें रखकर तू पुरुषार्थ करना, तो मोक्ष प्राप्त
होगा ।।२५७।।
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तू विचार कर, तेरे लिये दुनियामें एक आत्माके
सिवा और कौन आश्चर्यकारी वस्तु है ? — कोई नहीं ।
जगतमें तूने सब प्रकारके प्रयास किये, सब देखा, सब
बहिनश्रीके वचनामृत
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