Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 280-281.

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विकल्प नहीं टूटता परन्तु पहले पक्का निर्णय आता
है ।।२७९।।
वास्तवमें जिसे स्वभाव रुचे, अंतरकी जागृति
हो, उसे बाहर आना सुहाता ही नहीं । स्वभाव
शान्ति एवं निवृत्तिरूप है, शुभाशुभ विभावभावोंमें
आकुलता और प्रवृत्ति है; उन दोनोंका मेल ही नहीं
बैठता ।।२८०।।
बाहरके सब कार्योंमें सीमामर्यादा होती है ।
अमर्यादित तो अन्तर्ज्ञान और आनन्द है । वहाँ
सीमामर्यादा नहीं है । अंतरमेंस्वभावमें मर्यादा
नहीं होती । जीवको अनादि कालसे जो बाह्य वृत्ति
है उसकी यदि मर्यादा न हो तब तो जीव कभी उससे
विमुख ही न हो, सदा बाह्यमें ही रुका रहे ।
अमर्यादित तो आत्मस्वभाव ही है । आत्मा अगाध
शक्ति से भरा है ।।२८१।।
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बहिनश्रीके वचनामृत