Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 289-290.

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वस्तुको पकड़नेके लिये सूक्ष्म उपयोगका प्रयत्न
कर ।।२८८।।
चैतन्यकी गहरी भावना तो अन्य भवमें भी
चैतन्यके साथ ही आती है । आत्मा तो शाश्वत पदार्थ
है न ? ऊपरी विचारोंमें नहीं परन्तु अंतरमें मंथन
करके तत्त्वविचारपूर्वक गहरे संस्कार डाले होंगे तो वे
साथ आयँगे ।
‘‘तत्प्रति प्रीतिचित्तेन येन वार्तापि हि श्रुता
निश्चितं स भवेद्भव्यो भाविनिर्वाणभाजनम् ।।’’’’
जिस जीवने प्रसन्नचित्तसे इस चैतन्यस्वरूप
आत्माकी बात भी सुनी है, वह भव्य पुरुष
भविष्यमें होनेवाली मुक्ति का अवश्य भाजन होता
है ।।२८९।।
आत्मा ज्ञानप्रधान अनंत गुणोंका पिण्ड है । उसके
साथ अंतरमें तन्मयता करना वही कर्तव्य है ।
वस्तुस्वरूपको समझकर ‘मैं तो ज्ञायक हूँ’ ऐसी लगन
ब. व. ८
बहिनश्रीके वचनामृत
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