जीव विद्यमान है वह कहाँ जायगा ? अवश्य प्राप्त
होगा ही ।।३०६।।
✽
तत्त्वका उपदेश असिधारा समान है; तदनुसार
परिणमित होने पर मोह भाग जाता है ।।३०७।।
✽
द्रव्य-गुण-पर्यायमें सारे ब्रह्माण्डका तत्त्व आ जाता
है । ‘प्रत्येक द्रव्य अपने गुणोंमें रहकर स्वतंत्ररूपसे
अपनी पर्यायरूप परिणमित होता है’, ‘पर्याय द्रव्यको
पहुँचती है, द्रव्य पर्यायको पहुँचता है’ — ऐसी-ऐसी
सूक्ष्मताको यथार्थरूपसे लक्षमें लेने पर मोह कहाँ खड़ा
रहेगा ? ३०८।।
✽
बकरियोंकी टोलीमें रहनेवाला पराक्रमी सिंहका
बच्चा अपनेको बकरीका बच्चा मान ले, परन्तु
सिंहको देखने पर और उसकी गर्जना सुनने पर ‘मैं
तो इस जैसा सिंह हूँ’ ऐसा समझ जाता है और
सिंहरूपसे पराक्रम प्रगट करता है, उसी प्रकार पर
और विभावके बीच रहनेवाले इस जीवने अपनेको
१२० ]
बहिनश्रीके वचनामृत