Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 314-316.

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ध्येय तक पहुँचना तो अपनेको ही है ।।३१३।।
खण्डखण्डरूप ज्ञानका उपयोग भी परवशता है ।
परवश सो दुःखी और स्ववश सो सुखी है । शुद्ध
शाश्वत चैतन्यतत्त्वके आश्रयरूप स्ववशतासे शाश्वत
सुख प्रगट होता है ।।३१४।।
द्रव्यद्रष्टि शुद्ध अंतःतत्त्वका ही अवलम्बन करती
है । निर्मल पर्याय भी बहिःतत्त्व है, उसका अवलम्बन
द्रव्यद्रष्टिमें नहीं है ।।३१५।।
अपनी महिमा ही अपनेको तारती है । बाहरी
भक्ति -महिमासे नहीं परन्तु चैतन्यकी परिणतिमें
चैतन्यकी निज महिमासे तरा जाता है । चैतन्यकी
महिमावंतको भगवानकी सच्ची महिमा होती है ।
अथवा भगवानकी महिमा समझना वह निज चैतन्य-
महिमाको समझनेमें निमित्त होता है ।।३१६।।
बहिनश्रीके वचनामृत
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