बहिनश्रीके वचनामृत
१३३
शुभभावमें श्रम पड़ता है, थकान लगती है;
क्योंकि वह आत्माका स्वभाव नहीं है । शुद्धभाव
आत्माका स्वाधीन स्वभाव होनेसे उसमें थकान नहीं
लगती । जितना स्वाधीन उतना सुख है । स्वभावके
सिवा सब दुःख ही है ।।३३८।।
✽
यह तो गुत्थी सुलझाना है । चैतन्यडोरेमें
अनादिकी गुत्थी पड़ी है । सूतकी लच्छीमें गुत्थी पड़
गई हो उसे धैर्यपूर्वक सुलझाये तो सिरा हाथमें आये
और गुत्थी सुलझ जाय, उसी प्रकार चैतन्यडोरेमें पड़ी
हुई गुत्थीको धीरजसे सुलझाये तो गुत्थी दूर हो
सकती है ।।३३९।।
✽
‘इसका करूँ, इसका करूँ’ — इस प्रकार तेरा
ध्यान बाह्यमें क्यों रुकता है ? इतना ध्यान तू अपनेमें
लगा दे ।।३४०।।
✽
निज चेतनपदार्थके आश्रयसे अनंत अद्भुत