Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 342.

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बहिनश्रीके वचनामृत

आत्मिक विभूति प्रगट होती है । अगाध शक्ति मेंसे क्या नहीं आता ? ३४१।।

अंतरमें तू अपने आत्माके साथ प्रयोजन रख और बाह्यमें देव-शास्त्र-गुरुके साथ; बस, अन्यके साथ तुझे क्या प्रयोजन है ?

जो व्यवहारसे साधनरूप कहे जाते हैं, जिनका आलम्बन साधकको आये बिना नहीं रहताऐसे देव-शास्त्र-गुरुके आलम्बनरूप शुभ भाव भी परमार्थसे हेय हैं, तो फि र अन्य पदार्थ या अशुभ भावोंकी तो बात ही क्या ? उनसे तुझे क्या प्रयोजन है ?

आत्माकी मुख्यतापूर्वक देव-शास्त्र-गुरुका आलम्बन साधकको आता है । मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेवने भी कहा है कि ‘हे जिनेन्द्र ! मैं किसी भी स्थान पर होऊँ, (परन्तु) पुनः पुनः आपके पादपंकजकी भक्ति हो’ !ऐसे भाव साधकदशामें आते हैं, और साथ ही साथ आत्माकी मुख्यता तो सतत बनी ही रहती है ।।३४२।।