Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 345.

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बहिनश्रीके वचनामृत

द्रव्यसामान्यका हीध्रुव तत्त्वका ही होता है । ज्ञायकका‘ध्रुव’का जोर एक क्षण भी नहीं हटता । द्रष्टि ज्ञायकके सिवा किसीको स्वीकार नहीं करती ध्रुवके सिवा किसी पर ध्यान नहीं देती; अशुद्ध पर्याय पर नहीं, शुद्ध पर्याय पर नहीं, गुणभेद पर नहीं । यद्यपि साथ वर्तता हुआ ज्ञान सबका विवेक करता है, तथापि द्रष्टिका विषय तो सदा एक ध्रुव ज्ञायक ही है, वह कभी छूटता नहीं है ।

पूज्य गुरुदेवका ऐसा ही उपदेश है, शास्त्र भी ऐसा ही कहते हैं, वस्तुस्थिति भी ऐसी ही है ।।३४४।।

मोक्षमार्गका स्वरूप संक्षेपमें कहें तो ‘अंतरमें ज्ञायक आत्माको साध’ । यह थोड़ेमें बहुत कहा जा चुका । विस्तार किया जाय तो अनंत रहस्य निकले, क्योंकि वस्तुमें अनंत भाव भरे हैं । सर्वार्थसिद्धिके देव तेतीस-तेतीस सागरोपम जितने काल तक धर्मचर्चा, जिनेन्द्रस्तुति इत्यादि करते रहते हैं । उस सबका संक्षेप यह है कि‘शुभाशुभ भावोंसे न्यारा एक ज्ञायकका आश्रय करना, ज्ञायकरूप परिणति करनी’ ।।३४५।।