Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 346-348.

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बहिनश्रीके वचनामृत
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पूज्य गुरुदेवने तो सारे भारतके जीवोंको जागृत किया है । सैंकड़ों वर्षमें जो स्पष्टता नहीं हुई थी इतनी अधिक मोक्षमार्गकी स्पष्टता की है । छोटे- छोटे बालक भी समझ सकें ऐसी भाषामें मोक्षमार्गको खोला है । अद्भुत प्रताप है । अभी तो लाभ लेनेका काल है ।।३४६।।

मुझे कुछ नहीं चाहिये, एक शान्ति चाहिये, कहीं शान्ति दिखायी नहीं देती । विभावमें तो आकुलता ही है । अशुभसे ऊबकर शुभमें और शुभसे थककर अशुभमेंऐसे अनंत-अनंत काल बीत गया । अब तो मुझे बस एक शाश्वत शान्ति चाहिये ।इस प्रकार अंतरमें गहराईसे भावना जागे और वस्तुका स्वरूप कैसा है उसकी पहिचान करे, प्रतीति करे, तो सच्ची शान्ति प्राप्त हुए बिना न रहे ।।३४७।।

रुचिकी उग्रतामें पुरुषार्थ सहज लगता है और रुचिकी मन्दतामें कठिन लगता है । रुचि मन्द हो जाने पर इधर-उधर लग जाय तब कठिन लगता है