Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 349.

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बहिनश्रीके वचनामृत
और रुचि बढ़ने पर सरल लगता है । स्वयं प्रमाद
करे तो दुर्गम होता है और स्वयं उग्र पुरुषार्थ करे
तो प्राप्त हो जाता है । सर्वत्र अपना ही कारण है ।
सुखका धाम आत्मा है, आश्चर्यकारी निधि आत्मामें
हैइस प्रकार बारम्बार आत्माकी महिमा लाकर
पुरुषार्थ उठाना और प्रमाद तोड़ना चाहिये ।।३४८।।
चक्रवर्ती, बलदेव और तीर्थंकर जैसे ‘यह राज्य,
यह वैभवकुछ नहीं चाहिये’ इस प्रकार सर्वकी
उपेक्षा करके एक आत्माकी साधना करनेकी धुनमें
अकेले जंगलकी ओर चल पड़े ! जिन्हें बाह्यमें किसी
प्रकारकी कमी नहीं थी, जो चाहें वह जिन्हें मिलता था,
जन्मसे ही, जन्म होनेसे पूर्व भी, इन्द्र जिनकी सेवामें
तत्पर रहते थे, लोग जिन्हें भगवान कहकर आदर देते
थेथेऐसे उत्कृष्ट पुण्यके धनी सब बाह्य ऋद्धिको
छोड़कर, उपसर्ग-परिषहोंकी परवाह किये बिना,
आत्माका ध्यान करनेके लिये वनमें चले गये, तो उन्हें
आत्मा सबसे महिमावन्त, सबसे विशेष आश्चर्यकारी
लगा होगा और बाह्यका सब तुच्छ भासित हुआ होगा