Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 351.

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बहिनश्रीके वचनामृत

क्रिया आत्मा कहाँ कर सकता है ? जड़के कार्यरूप तो जड़ परिणमित होता है; आत्मासे जड़के कार्य कभी नहीं होते । ‘शरीरादिके कार्य मेरे नहीं हैं और विभाव कार्य भी स्वरूपपरिणति नहीं है, मैं तो ज्ञायक हूँ’ ऐसी साधककी परिणति होती है । सच्चे मोक्षार्थीको भी अपने जीवनमें ऐसा घुँट जाना चाहिये । भले प्रथम सविकल्परूप हो, परन्तु ऐसा पक्का निर्णय करना चाहिये । पश्चात् जल्दी अंतरका पुरुषार्थ करे तो जल्दी निर्विकल्प दर्शन हो, देर करे तो देरसे हो । निर्विकल्प स्वानुभूति करके, स्थिरता बढ़ाते-बढ़ाते, जीव मोक्ष प्राप्त करता है ।इस विधिके सिवा मोक्ष प्राप्त करनेकी अन्य कोई विधि नहीं है ।।३५०।।

किसी भी प्रसंगमें एकाकार नहीं हो जाना । मोक्षके सिवा तुझे और क्या प्रयोजन है ? प्रथम भूमिकामें भी ‘मात्र मोक्ष-अभिलाष’ होती है ।

जो मोक्षका अर्थी हो, संसारसे जो थक गया हो, उसके लिये गुरुदेवकी वाणीका प्रबल स्रोत बह रहा है जिसमेंसे मार्ग सूझता है । वास्तवमें तो