Benshreeke Vachanamrut (Hindi).

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बहिनश्रीके वचनामृत
१४३

जो पूरा निर्मल है, परिपूर्ण है, परम निरपेक्ष है, ध्रुव है और त्रैकालिक-परिपूर्ण-सामर्थ्यमय हैऐसे अभेद एक परमपारिणामिकभावका हीपारमार्थिक असली वस्तुका हीआश्रय करने योग्य है, उसीकी शरण लेने योग्य है । उसीसे सम्यग्दर्शनसे लेकर मोक्ष तककी सर्व दशाएँ प्राप्त होती हैं ।

आत्मामें सहजभावसे विद्यमान ज्ञान, दर्शन, चारित्र, आनन्द इत्यादि अनन्त गुण भी यद्यपि पारिणामिकभावरूप ही हैं तथापि वे चेतनद्रव्यके एक- एक अंशरूप होनेके कारण उनका भेदरूपसे अवलम्बन लेने पर साधकको निर्मलता परिणमित नहीं होती ।

इसलिये परमपारिणामिकभावरूप अनन्तगुण- स्वरूप अभेद एक चेतनद्रव्यका हीअखण्ड परमात्म- द्रव्यका हीआश्रय करना, वहीं द्रष्टि देना, उसीकी शरण लेना, उसीका ध्यान करना, कि जिससे अनंत निर्मल पर्यायें स्वयं खिल उठें ।

इसलिये द्रव्यद्रष्टि करके अखण्ड एक ज्ञायकरूप वस्तुको लक्षमें लेकर उसका अवलम्बन करो । वही, वस्तुके अखण्ड एक परमपारिणामिकभावका आश्रय