और उत्तम संयोग बिजलीकी चमककी भाँति अल्प कालमें विलीन हो जायेंगे । इसलिये जैसे तू अकेला ही दुःखी हो रहा है, वैसे अकेला ही सुखके मार्ग पर जा, अकेला ही मुक्ति को प्राप्त कर ले ।।३५७।।
गुरुदेव मार्गको अत्यन्त स्पष्ट बतला रहे हैं । आचार्यभगवन्तोंने मुक्ति का मार्ग प्रकाशित किया है और गुरुदेव उसे स्पष्ट कर रहे हैं । जैसे एक-एक माँगमें तेल डालते हैं उसीप्रकार सूक्ष्मतासे स्पष्ट करके सब समझाते हैं । भेदज्ञानका मार्ग हथेलीमें दिखाते हैं । माल मसलकर, तैयार करके दे रहे हैं कि ‘ले, खा ले’ । अब खाना तो अपनेको है ।।३५८।।
सहजतत्त्वका कभी नाश नहीं होता, वह मलिन नहीं होता, उसमें न्यूनता नहीं आती । शरीरसे वह भिन्न है, उपसर्ग उसे छूते नहीं हैं, तलवार उसे छेदती नहीं है, अग्नि उसे जलाती नहीं है, राग-द्वेष उसे विकारी नहीं बनाते । वाह तत्त्व ! अनंत काल बीत गया हो तो भी तू तो ज्योंका त्यों ही है । तुझे कोई पहिचाने या न