— यही सुखी होनेका उपाय है । विश्वास करो ।।३७१।।
जैसे पातालकुआँ खोदने पर, पत्थरकी आखिरी पर्त टूटकर उसमें छेद हो जाने पर पानीकी जो ऊँची पिचकारी उड़ती है, उसे देखनेसे पातालके पानीका अंदरका भारी जोर ख्यालमें आता है, उसी प्रकार सूक्ष्म उपयोग द्वारा गहराईमें चैतन्यतत्त्वके तल तक पहुँच जाने पर, सम्यग्दर्शन प्रगट होनेसे, जो आंशिक शुद्ध पर्याय फू टती है, उस पर्यायका वेदन करने पर चैतन्यतत्त्वका अंदरका अनंत ध्रुव सामर्थ्य अनुभवमें — स्पष्ट ख्यालमें आता है ।।३७२।।
सब तालोंकी कुंजी एक — ‘ज्ञायकका अभ्यास करना’ । इससे सब ताले खुल जायँगे । जिसे संसारकारागृहसे छूटना हो, मुक्ति पुरीमें जाना हो, उसे मोह-राग-द्वेषरूप ताले खोलनेके लिये ज्ञायकका अभ्यास करनेरूप एक ही कुंजी लगानी चाहिये ।।३७३।।