१५८
बहिनश्रीके वचनामृत
आलंबनसे प्रगट होनेवाली औपशमिक, क्षायोपशमिक
और क्षायिकभावरूप पर्यायोंका — व्यक्त होनेवाली
विभूतियोंका — वेदन होता है परन्तु उनका आलम्बन
नहीं होता — उन पर जोर नहीं होता । जोर तो सदा
अखण्ड शुद्ध द्रव्य पर ही होता है । क्षायिकभावका
भी आश्रय या आलम्बन नहीं लिया जाता क्योंकि वह
तो पर्याय है, विशेषभाव है । सामान्यके आश्रयसे ही
शुद्ध विशेष प्रगट होता है, ध्रुवके आलम्बनसे ही
निर्मल उत्पाद होता है । इसलिये सब छोड़कर, एक
शुद्धात्मद्रव्यके प्रति — अखण्ड परमपारिणामिकभावके
प्रति — द्रष्टि कर, उसीके ऊपर निरन्तर जोर रख,
उसीकी ओर उपयोग ढले ऐसा कर ।।३७६।।
✽
स्वभावमेंसे विशेष आनन्द प्रगट करनेके लिये
मुनिराज जंगलमें बसे हैं । उस हेतु उनको निरन्तर
परमपारिणामिकभावमें लीनता वर्तती है, — दिन-रात
रोमरोममें एक आत्मा ही रम रहा है । शरीर है
किन्तु शरीरकी कोई चिन्ता नहीं है, देहातीत जैसी
दशा है । उत्सर्ग एवं अपवादकी मैत्रीपूर्वक रहनेवाले