Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 377.

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बहिनश्रीके वचनामृत
आलंबनसे प्रगट होनेवाली औपशमिक, क्षायोपशमिक
और क्षायिकभावरूप पर्यायोंकाव्यक्त होनेवाली
विभूतियोंकावेदन होता है परन्तु उनका आलम्बन
नहीं होताउन पर जोर नहीं होता । जोर तो सदा
अखण्ड शुद्ध द्रव्य पर ही होता है । क्षायिकभावका
भी आश्रय या आलम्बन नहीं लिया जाता क्योंकि वह
तो पर्याय है, विशेषभाव है । सामान्यके आश्रयसे ही
शुद्ध विशेष प्रगट होता है, ध्रुवके आलम्बनसे ही
निर्मल उत्पाद होता है । इसलिये सब छोड़कर, एक
शुद्धात्मद्रव्यके प्रतिअखण्ड परमपारिणामिकभावके
प्रतिद्रष्टि कर, उसीके ऊपर निरन्तर जोर रख,
उसीकी ओर उपयोग ढले ऐसा कर ।।३७६।।
स्वभावमेंसे विशेष आनन्द प्रगट करनेके लिये
मुनिराज जंगलमें बसे हैं । उस हेतु उनको निरन्तर
परमपारिणामिकभावमें लीनता वर्तती है,दिन-रात
रोमरोममें एक आत्मा ही रम रहा है । शरीर है
किन्तु शरीरकी कोई चिन्ता नहीं है, देहातीत जैसी
दशा है । उत्सर्ग एवं अपवादकी मैत्रीपूर्वक रहनेवाले