Benshreeke Vachanamrut (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 160 of 212
PDF/HTML Page 175 of 227

 

१६०

बहिनश्रीके वचनामृत

इसलिये उनको गृहस्थाश्रम सम्बन्धी शुभाशुभ परिणाम होते हैं । स्वरूपमें स्थिर नहीं रहा जाता इसलिये वे विविध शुभभावोंमें युक्त होते हैं :‘मुझे देव-गुरुकी सदा समीपता हो, गुरुके चरणकमलकी सेवा हो’ इत्यादि प्रकारसे जिनेन्द्रभक्ति -स्तवन-पूजन एवं गुरुसेवाके भाव होते हैं तथा शास्त्रस्वाध्यायके, ध्यानके, दानके, भूमिकानुसार अणुव्रत एवं तपादिके शुभभाव उनके हठ बिना आते हैं । इन सब भावोंके बीच ज्ञातृत्व-परिणतिकी धारा तो सतत चलती ही रहती है ।

निजस्वरूपधाममें रमनेवाले मुनिराजको भी पूर्ण वीतरागदशाका अभाव होनेसे विविध शुभभाव होते हैं :उनके महाव्रत, अट्ठाईस मूलगुण, पंचाचार, स्वाध्याय, ध्यान इत्यादि सम्बन्धी शुभभाव आते हैं तथा जिनेन्द्रभक्ति -श्रुतभक्ति -गुरुभक्ति के उल्लासमय भाव भी आते हैं । ‘हे जिनेन्द्र ! आपके दर्शन होनेसे, आपके चरणकमलकी प्राप्ति होनेसे, मुझे क्या नहीं प्राप्त हुआ ? अर्थात् आप मिलनेसे मुझे सब कुछ मिल गया ।’ ऐसे अनेक प्रकारसे श्री पद्मनन्दी आदि मुनिवरोंने जिनेन्द्रभक्ति के स्रोत बहाये