Benshreeke Vachanamrut (Hindi).

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बहिनश्रीके वचनामृत
इसलिये उनको गृहस्थाश्रम सम्बन्धी शुभाशुभ परिणाम
होते हैं । स्वरूपमें स्थिर नहीं रहा जाता इसलिये वे
विविध शुभभावोंमें युक्त होते हैं :‘मुझे देव-गुरुकी
सदा समीपता हो, गुरुके चरणकमलकी सेवा हो’
इत्यादि प्रकारसे जिनेन्द्रभक्ति -स्तवन-पूजन एवं
गुरुसेवाके भाव होते हैं तथा शास्त्रस्वाध्यायके,
ध्यानके, दानके, भूमिकानुसार अणुव्रत एवं तपादिके
शुभभाव उनके हठ बिना आते हैं । इन सब भावोंके
बीच ज्ञातृत्व-परिणतिकी धारा तो सतत चलती ही
रहती है ।
निजस्वरूपधाममें रमनेवाले मुनिराजको भी पूर्ण
वीतरागदशाका अभाव होनेसे विविध शुभभाव होते
हैं :उनके महाव्रत, अट्ठाईस मूलगुण, पंचाचार,
स्वाध्याय, ध्यान इत्यादि सम्बन्धी शुभभाव आते हैं
तथा जिनेन्द्रभक्ति -श्रुतभक्ति -गुरुभक्ति के उल्लासमय
भाव भी आते हैं । ‘हे जिनेन्द्र ! आपके दर्शन
होनेसे, आपके चरणकमलकी प्राप्ति होनेसे, मुझे
क्या नहीं प्राप्त हुआ ? अर्थात् आप मिलनेसे मुझे
सब कुछ मिल गया ।’ ऐसे अनेक प्रकारसे श्री
पद्मनन्दी आदि मुनिवरोंने जिनेन्द्रभक्ति के स्रोत बहाये