आत्माकी अनुभूति वही शिवपुरीकी सड़क है, वही मोक्षका मार्ग है । दूसरे सब उस मार्गका वर्णन करनेके भिन्नभिन्न प्रकार हैं । जितने वर्णनके प्रकार हैं, उतने मार्ग नहीं हैं; मार्ग तो एक ही है ।।३८३।।
तेरे आत्मामें निधान ठसाठस भरे हैं । अनंत- गुणनिधानको रहनेके लिये अनंत क्षेत्रकी आवश्यकता नहीं है, असंख्यात प्रदेशोंके क्षेत्रमें ही अनंत गुण ठसाठस भरे हैं, तुझमें ऐसे निधान हैं, तो फि र तू बाहर क्यों जाता है ? तुझमें है उसे देख न ! तुझमें क्या कमी है ? तुझमें पूर्ण सुख है, पूर्ण ज्ञान है, सब कुछ है । सुख और ज्ञान तो क्या परन्तु कोई भी वस्तु बाहर लेने जाना पड़े ऐसा नहीं है । एक बार तू अंतरमें प्रवेश कर, सब अन्तरमें है । अन्तरमें गहरे उतरने पर, सम्यग्दर्शन होने पर, तेरे निधान तुझे दिखायी देंगे और उन सर्व निधानके प्रगट अंशको वेदकर तू तृप्त हो जायगा । पश्चात् पुरुषार्थ करते ही रहना जिससे पूर्ण निधानका भोक्ता होकर तू सदाकाल परम तृप्त-तृप्त रहेगा ।।३८४।।