Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 384.

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बहिनश्रीके वचनामृत
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आत्माकी अनुभूति वही शिवपुरीकी सड़क है, वही
मोक्षका मार्ग है । दूसरे सब उस मार्गका वर्णन
करनेके भिन्नभिन्न प्रकार हैं । जितने वर्णनके प्रकार
हैं, उतने मार्ग नहीं हैं; मार्ग तो एक ही है ।।३८३।।
तेरे आत्मामें निधान ठसाठस भरे हैं । अनंत-
गुणनिधानको रहनेके लिये अनंत क्षेत्रकी आवश्यकता
नहीं है, असंख्यात प्रदेशोंके क्षेत्रमें ही अनंत गुण
ठसाठस भरे हैं, तुझमें ऐसे निधान हैं, तो फि र तू
बाहर क्यों जाता है ? तुझमें है उसे देख न ! तुझमें
क्या कमी है ? तुझमें पूर्ण सुख है, पूर्ण ज्ञान है,
सब कुछ है । सुख और ज्ञान तो क्या परन्तु कोई
भी वस्तु बाहर लेने जाना पड़े ऐसा नहीं है । एक
बार तू अंतरमें प्रवेश कर, सब अन्तरमें है । अन्तरमें
गहरे उतरने पर, सम्यग्दर्शन होने पर, तेरे निधान
तुझे दिखायी देंगे और उन सर्व निधानके प्रगट
अंशको वेदकर तू तृप्त हो जायगा । पश्चात् पुरुषार्थ
करते ही रहना जिससे पूर्ण निधानका भोक्ता होकर
तू सदाकाल परम तृप्त-तृप्त रहेगा ।।३८४।।