Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 392-393.

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बहिनश्रीके वचनामृत
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ज्ञानीने चैतन्यमहलके ताले खोल दिये हैं । अंतरमें ज्ञान-आनन्दादिकी अखूट समृद्धि देखकर, और थोड़ी भोगकर, पहले कभी जिसका अनुभव नहीं हुआ था ऐसी विश्रान्ति उसे हो गई है ।।३९१।।

एक चैतन्यतत्त्व ही उत्कृष्ट आश्चर्यकारी है । विश्वमें ऐसी कोई विभूति नहीं है कि जो चैतन्यतत्त्वसे ऊँची हो । वह चैतन्य तो तेरे पास ही है, तू ही वह है । तो फि र शरीर पर उपसर्ग आने पर या शरीर छूटनेके प्रसंगमें तू डरता क्यों है ? जो कोई बाधा पहुँचाता है वह तो पुद्गलको पहुँचाता है, जो छूट जाता है वह तो तेरा था ही नहीं । तेरा तो मंगलकारी, आश्चर्यकारी तत्त्व है । तो फि र तुझे डर किसका ? समाधिमें स्थिर होकर एक आत्माका ध्यान कर, भय छोड़ दे ।।३९२।।

जिसे भवभ्रमणसे सचमुच छूटना हो उसे अपनेको परद्रव्यसे भिन्न पदार्थ निश्चित करके, अपने ध्रुव ज्ञायकस्वभावकी महिमा लाकर, सम्यग्दर्शन प्रगट