अर्थात् रुचिसे लेकर ठेठ केवलज्ञान तक पुरुषार्थ ही
आवश्यक है ।।७।।
✽
आजकल पूज्य गुरुदेवकी बात ग्रहण करनेके लिये
अनेक जीव तैयार हो गये हैं । गुरुदेवको वाणीका
योग प्रबल है; श्रुतकी धारा ऐसी है कि लोगोंको
प्रभावित करती है और ‘सुनते ही रहें’ ऐसा लगता
है । गुरुदेवने मुक्ति का मार्ग दरशाया और स्पष्ट किया
है । उन्हें श्रुतकी लब्धि है ।।८।।
✽
पुरुषार्थ करनेकी युक्ति सूझ जाय तो मार्गकी
उलझन टल जाय । फि र युक्ति से कमाये । पैसा
पैसेको खींचता है — धन कमाये तो ढेर हो जाये,
तदनुसार आत्मामें पुरुषार्थ करनेकी युक्ति आ गई, तो
कभी तो अंतरमें ढेरके ढेर लग जाते हैं और कभी
सहज जैसा हो वैसा रहता है ।।९।।
✽
हम सबको सिद्धस्वरूप ही देखते हैं, हम तो सबको
चैतन्य ही देख रहे हैं । हम किन्हींको राग-द्वेषवाले
देखते ही नहीं । वे अपनेको भले ही चाहे जैसा मानते
४
बहिनश्रीके वचनामृत