Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 8-10.

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अर्थात् रुचिसे लेकर ठेठ केवलज्ञान तक पुरुषार्थ ही
आवश्यक है ।।।।
आजकल पूज्य गुरुदेवकी बात ग्रहण करनेके लिये
अनेक जीव तैयार हो गये हैं । गुरुदेवको वाणीका
योग प्रबल है; श्रुतकी धारा ऐसी है कि लोगोंको
प्रभावित करती है और ‘सुनते ही रहें’ ऐसा लगता
है । गुरुदेवने मुक्ति का मार्ग दरशाया और स्पष्ट किया
है । उन्हें श्रुतकी लब्धि है ।।।।
पुरुषार्थ करनेकी युक्ति सूझ जाय तो मार्गकी
उलझन टल जाय । फि र युक्ति से कमाये । पैसा
पैसेको खींचता हैधन कमाये तो ढेर हो जाये,
तदनुसार आत्मामें पुरुषार्थ करनेकी युक्ति आ गई, तो
कभी तो अंतरमें ढेरके ढेर लग जाते हैं और कभी
सहज जैसा हो वैसा रहता है ।।।।
हम सबको सिद्धस्वरूप ही देखते हैं, हम तो सबको
चैतन्य ही देख रहे हैं । हम किन्हींको राग-द्वेषवाले
देखते ही नहीं । वे अपनेको भले ही चाहे जैसा मानते
बहिनश्रीके वचनामृत