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बहिनश्रीके वचनामृत
धर्मी जीव रोगकी, वेदनाकी या मृत्युकी चपेटमें
नहीं आता, क्योंकि उसने शुद्धात्माकी शरण प्राप्त की
है । विपत्तिके समय वह आत्मामेंसे शान्ति प्राप्त कर
लेता है । विकट प्रसंगमें वह निज शुद्धात्माकी शरण
विशेष लेता है । मरणादिके समय धर्मी जीव शाश्वत
ऐसे निजसुखसरोवरमें विशेष-विशेष डुबकी लगा
जाता है — जहाँ रोग नहीं है, वेदना नहीं है, मरण
नहीं है, शान्तिकी अखूट निधि है । वह शान्तिपूर्वक
देह छोड़ता है, उसका जीवन सफल है ।
तू मरणका समय आनेसे पहले चेत जा, सावधान
हो, सदा शरणभूत — विपत्तिके समय विशेष शरणभूत
होनेवाले — ऐसे शुद्धात्मद्रव्यको अनुभवनेका उद्यम
कर ।।४०९।।
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जिसने आत्माके मूल अस्तित्वको नहीं पकड़ा,
‘स्वयं शाश्वत तत्त्व है, अनंत सुखसे भरपूर है’ ऐसा
अनुभव करके शुद्ध परिणतिकी धारा प्रगट नहीं की,
उसने भले सांसारिक इन्द्रियसुखोंको नाशवंत और
भविष्यमें दुःखदाता जानकर छोड़ दिया हो और