Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 414.

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बहिनश्रीके वचनामृत

सर्वज्ञभगवान परिपूर्णज्ञानरूपसे परिणमित हो गये हैं । वे अपनेको पूर्णरूपसेअपने सर्वगुणोंके भूत-वर्तमान-भावी पर्यायोंके अविभाग प्रतिच्छेदों सहितप्रत्यक्ष जानते हैं । साथ ही साथ वे स्वक्षेत्रमें रहकर, परके समीप गये बिना, परसन्मुख हुए बिना, निराले रहकर लोकालोकके सर्व पदार्थोंको अतीन्द्रियरूपसे प्रत्यक्ष जानते हैं । परको जाननेके लिये वे परसन्मुख नहीं होते । परसन्मुख होनेसे तो ज्ञान दब जाता हैरुक जाता है, विकसित नहीं होता । जो ज्ञान पूर्णरूपसे परिणमित हो गया है वह किसीको जाने बिना नहीं रहता । वह ज्ञान स्वचैतन्यक्षेत्रमें रहते हुए, तीनों कालके तथा लोकालोकके सर्व स्व-पर ज्ञेयों मानों वे ज्ञानमें उत्कीर्ण हो गये हों उस प्रकार, समस्त स्व-परको एक समयमें सहजरूपसे प्रत्यक्ष जानता है; जो बीत गया है उस सबको भी पूरा जानता है, जो आगे होना है उस सबको भी पूरा जानता है । ज्ञानशक्ति अद्भुत है ।।४१३।।

कोई स्वयं चक्रवर्ती राजा होने पर भी, अपने