बहिनश्रीके वचनामृत
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पास ऋद्धिके भण्डार भरे होने पर भी, बाहर भीख
माँगता हो, वैसे तू स्वयं तीन लोकका नाथ होने
पर भी, तेरे पास अनंत गुणरूप ऋद्धिके भण्डार भरे
होने पर भी, ‘पर पदार्थ मुझे कुछ ज्ञान देना, मुझे
सुख देना’ इस प्रकार भीख माँगता रहता है ! ‘मुझे
धनमेंसे सुख मिल जाय, मुझे शरीरमेंसे सुख मिल
जाय, मुझे शुभ कार्योंमेंसे सुख मिल जाय, मुझे
शुभ परिणाममेंसे सुख मिल जाय’ इस प्रकार तू
भीख माँगता रहता है ! परन्तु बाहरसे कुछ नहीं
मिलता । गहराईसे ज्ञायकपनेका अभ्यास किया जाय
तो अंतरसे ही सब कुछ मिलता है । जैसे भोंयरेमें
जाकर योग्य कुंजी द्वारा तिजोरीका ताला खोला
जाये तो निधान प्राप्त हों और दारिद्र दूर हो जाये,
उसी प्रकार गहराईमें जाकर ज्ञायकके अभ्यासरूप
कुंजीसे भ्रान्तिरूप ताला खोल दिया जाये तो अनंत
गुणरूप निधान प्राप्त हों और भिक्षुकवृत्ति मिट
जाये ।।४१४।।
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मुनिराज कहते हैं : — हमारा आत्मा तो अनंत
गुणोंसे भरपूर, अनंत अमृतरससे भरपूर, अक्षय घट