Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 416.

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बहिनश्रीके वचनामृत
है । उस घटमेंसे पतली धारसे अल्प अमृत पिया
जाय ऐसे स्वसंवेदनसे हमें सन्तोष नहीं होता । हमें
तो प्रतिसमय पूर्ण अमृतका पान हो ऐसी पूर्ण दशा
चाहिये । उस पूर्ण दशामें सादि-अनन्त काल पर्यन्त
प्रतिसमय पूरा अमृत पिया जाता है और घट भी सदा
परिपूर्ण भरा रहता है । चमत्कारिक पूर्ण शक्ति वान
शाश्वत द्रव्य और प्रतिसमय ऐसी ही पूर्ण व्यक्ति वाला
परिणमन ! ऐसी उत्कृष्ट-निर्मल दशाकी हम भावना
भाते हैं । (ऐसी भावनाके समय भी मुनिराजकी द्रष्टि
तो सदाशुद्ध आत्मद्रव्य पर ही है ।) ।।४१५।।
भवभ्रमण चलता रहे ऐसे भावमें यह भव
व्यतीत होने देना योग्य नहीं है । भवके अभावका
प्रयत्न करनेके लिये यह भव है । भवभ्रमण कितने
दुःखोंसे भरा है उसका गंभीरतासे विचार तो कर !
नरकके भयंकर दुःखोंमें एक क्षण निकलना भी
असह्य लगता है वहाँ सागरोपम कालकी आयु कैसे
कटी होगी ? नरकके दुःख सुने जाएँ ऐसे नहीं हैं ।
पैरमें काँटा लगने जितना दुःख भी तुझसे सहा नहीं
जाता, तो फि र जिसके गर्भमें उससे अनन्तानन्तगुने